Anju Dixit

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पहाड़ वाला राक्षस

रेवा --रेवा  कहाँ हो तुम ??????
अरे क्यों शोर मचा रही हो सरिता की सास सरिता पर चिल्लाई ।
अरे होगी कहीं पास पड़ोस में ।
अरे अम्माँ सब जगह देख लिया कहीं नही दिख रही पूरे20 मिनट हो गए देखते देखते।

वो कहीं रज्जो की बिटिया के साथ तो नही खेल रही वहाँ भी देख आयी ।कहीं न मिल रही पता नही कहाँ चली गयी ।
अरे सरिता आज तो पूणिमा है???
तो क्या हुआ अम्माँ ????तभी उसके शब्द उसके गले मे अटक गए उसने मन ही मन दोहराया आज पूर्णिमा है वो भी शरदपूर्णिमा  ।

नही नही ऐसा नही हो सकता वह कल्पना मात्र से ही चीख पड़ी ,
चीख सुनकर  रजत दौड़कर आया क्या हुआ क्यों चीख रही।
रेवा के पापा रेवा नही मिल रही।
अरे होगी यहीं कहि खेल रही होगी, सब जगह ढूढ लिया कहीं न मिल रही है ।और आज पूनम की रात है ।
अरे तो क्या हो गया कहते कहते रजत रुक गया क्या आज पूनम की रात है तो तू यह तो नही कहना नही चाह रही  कि वो पहाड़ी बाला राक्षस उसे  वह पूरी बात सोचने मात्र से ही कांप गया नही नही ऐसा नही हो सकता चल चलकर देखते होगी यहीं कहीं, दोनों दौड़ पड़े ढूढने सारे गाँव मे ढूढा पर कोई पता न चला।
रजत और सरिता के दो ही बच्चे थे बेटी रेवा , और बेटा कुमुद  रेवा कुमुद से 3 साल बड़ी थी वह इसी वर्ष 11 साल में पड़ी थी।
पर देखने  में 14 साल से कम न लगती थी ,नीली आँखे कन्चे से।होंठ गुलाबी गुलाब की पंखुड़ी से ।
हँसे तो मोती से दांतों के आगे सच्चे मोती फीके।
और चेहरे के सौंदर्य के आगे  पूनम का चाँद। गजब के लंबे  बाल।
एक बार को जो भी देखे अपलक निहारता रह जाए।
सविता ने रोना शुरू कर दिया सारा गाँव आ गया सब कह रहे अपनी अपनी। आज बज ते ही वो राक्षस उसे अपना निवाला बना लेगा।
अब कोई क्या कर सकता है सब बड़े लाचार खड़े थे।
तभी  सरिता दौड़ गयी पहाड़ी की तरफ नही मैं ऐसा होने नही दुंगी।
मैं तुम लोगों की तरह हाथ पर हाथ रखकर न बैठूंगी।
तभी रजत और पूरा गाँव दौड़ पड़ा पहाड़ी की तरफ जो सुनता वही पहुँच जाता उधर ।
पर आज सरिता पर किसी की परवाह न थी बिजली सी गति आ गयी उसके कदमो में जा पहुँची पहाड़ी की चट्टान पर जिससे थोड़ी ही दूर गुफा में रहता था वो खूंख्वार राक्षस।
यह देख सब डर गए चीखने लगे अरे कोई रोको इसे सरिता की सास चीखी तभी रजत ने उसे पुकारा-----सरिता वापस आ जा आ जा
नही तो तू भी न बचेगी ।
हाँ नही बचने दे मुझे  और मैं बचना भी न चाहती  तुम सब कायर हो ।तुम्हारी कायरता का ही यह परिणाम  है की कितनी माँ की कोख उजड़ गयी।
और हर साल आज के दिन वो दानव 11साल।पूरी कर चुकी बच्चियों
को ले जाता उठाकर और तृप्त कर लेता अपनी रक्तपिपासा को।
पर आज ऐसा न होने दुंगी मैं अपनी बेटी को उसका निवाला न बनने दुंगी मैं जा रही मैं  कहकर  वह गुफा के द्वार में प्रविष्ट कर गयी और कुछ देर बाद सबकी नजरों से ओझल हो गयी।
सब दंग रह गए मानो जड़ हो गए।
रजत आगे बड़ा पर लोगों ने  रोक लिया कि वो पागलपन न करे उसके बाद उसके बेटे और बूढ़ी माँ का क्या होगा   रजत ठिठक गया क्या करे क्या न करे इसी उधेड़बुन में गुफा की तरफ देख रहा था।
रात का दूसरा पहर बीतने को था सभी की यह राय थी अब वापस लौट चलो पर रजत जाने को तैयार न था।
सब समझा कर लौट ने लगे  बस रजत उसकी माँ ,बेटा और दो चार पड़ोसी रह गए रोतेरोते सबके आसूं सूख गए।
तभी जोर की अट्टाहस हुई सभी चौक गए जो गाँव मे पहुँच गए वो पुनः
वापस लौट पड़े गुफा की तरफ।
यह क्या विशालकाय शरीर बाला दानव हाथ मे रेवा को थामे बाहर आए गया ।साइड में सरिता भी थी।
सब अपलक देख रहे थे इस चमत्कार को,
दानव दहाड़ा अरे कायरों  धिक्कार है तुम पर  अब क्या देख रहे ,
देखो जिस औरत को तुम तुच्छ समझते उसने हरा दिया अपने दिमाग और साहस से मुझ निर्दयी को और बचा लिया अपनी बच्ची को।
मैं इसकी बेटी को मारकर खाने ही जा रहा था तभी एक छोटी से कटार लेकर ठहर जा ठहर जा दुष्ट मेरी बेटी को हाथ न लगाना कहती हुई यह जब मेरी तरफ दौड़ी तो मुझे माँ दुर्गा का रूप लगी।
और मैं चाहकर भी साहस न कर सका उसकी बेटी को मारने का।
उसके अदभुत साहस और ममतामयी मूरत को देखकर मैं  नतमस्तक हो गया मेरा पाषाण रक्तपिपासा का लोलुप ह्रदय परिवर्तित हो गया।
मेरी जिन आँखों मे सदा बदले की चिंगारी निकलती थीं
उन आँखों में अश्रु धारा प्रवाहित हो गयी।
मन कह उठा नारी तेरे कितने रूप।
पर ममता का रूप अदभुत।
अगर तुम में से किसी ने भी यह साहस आज से 20 साल पहले कर दिया होता तो शायद मैं भी बदल गया होता ।
आज इस माँ के साहस ममता के आगे मैं झुक गया ।
मैं हमेशा हमेशा के लिए आज अपने आतंक डर से मुक्त करके जा रहा यह गुफा  को इस गाँव को छुटकारा देकर।

ऐसा कहकर सविता के सिर पर हाथ फिराकर वह पीछे चट्टानों में अदृश्य  होता चला गया।
सरिता अपनी बेटी को सीने से चिपकाए  नीचे आ गयी।
रजत ने उससे माफी मांग ली गाँव सभी सर झुकाए खड़े थे आँखों से पश्चाताप के  आसुँ वह  रहे थे।
हर तरफ  सरिता की जय जयकार  गूंज।
सच कहा किसी ने बड़ी से बड़ी परिस्थिति में हमे साहस और धैर्य नही
त्यागना चाहिए।
"हारिए न हिम्मत विसरिये न राम ।"
सरिता मन ही न यही सोच रही थी।


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3 Comments

RISHITA

29-Sep-2023 07:26 AM

Fabulous

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🤫

17-Sep-2021 07:01 PM

अद्भुत...बहुत बढ़िया!सच ही कहा है परिस्थितयो में हिम्मत कर धैर्य और सूझबूझ से समस्याएं सुलझानी चाहिए।

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Shalini Sharma

17-Sep-2021 03:11 PM

Superb ✌️

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